Thursday, May 29, 2008

महत्ता

हवा पकड़ सकते नहीं,
लहरें गिन सकते नहीं,
महत्ता प्यार की,
समझ सकते नहीं।

मेरे काव्य संग्रह 'भँवर 'से

दो दिन

लहरों की भांति ,
उतार-चडाव ,
जीवन नहीं ,
शांति पड़ाव।

----मेरे काव्य संग्रह 'भँवर ' से

Sunday, May 4, 2008

आह

नेताओं को गरीबों के,
दर्द का अहसास है,
अधिकतर छीन लिया,
शेष खून की प्यास है।

देख कर इनका बहशीपन,
मन विचलित हो उठता है,
मारूं तो किस मौत मारूं,
हर दंड कम लगता है.