Sunday, August 8, 2010

मानसिक संतुलन

पूरे विश्व में,
यह हो रहा है,
मानसिक संतुलन,
बिगड़ रहा है।

अच्छा चाल-चलन,
घटता जा रहा है,
अविश्वास निरंतर,
बढता जा रहा है।

इर्षा और नफरत की आग में,
जलता जा रहा है,
लालच के अथाह सागर में,
डूबता जा रहा है।

ज्यादा पाने की चाह में,
सब कुछ खोता जा रहा है,
मानव धीरे-धीरे,
अमानुष होता जा रहा है।

एक-एक कर,
सबको छोड़ता जा रहा है,
अब ये आलम है,
अकेलापन खा रहा है।

भाग्य

मेरी बीवी,
खाना बनाती है,
कपडे धोती है,
भाग्य की बात है।

मेरी बेटी,
चाय भी नहीं बनाती,
खाली प्याला भी नहीं उठाती,
भाग्य की बात है।

लगता है,
भाग्य करवट ले रहा है,
लड़की-लड़के के अंतर को,
मिटा रहा है।

सदियों के गलत को,
जो भाग्य हो गया था,
अब भाग्य-विधाता उसे,
बदल रहा है।