Sunday, October 24, 2010

युद्ध-पताका

मरे हुए लोग,
क्या बदलाव लायेंगे,
कुछ बचे हैं जीवित,
वे इन्कलाब लायेंगे।

उठालो अपने हाथ,
गूँज करे यह नारा,
ज़ुल्मों का करो नाश,
है ये देश हमारा।

सैलाब जब आता है,
किनारे टूटते हैं,
आन्दोलनों से ही,
जहां बदलते हैं।

सब कुछ तोड़ो,
चुप रहना छोड़ो,
लहराओ युद्ध-पताका,
बदलाव लाकर छोड़ो।

अग्रसर

छोटे-छोटे क़दमों से,
बड़े-बड़े क़दमों से,
सुख-शान्ति खो कर या पा कर,
मृत्यु की ओर अग्रसर।

कुछ खा कर या पी कर,
अथवा खाली पेट जी कर,
हार कर या जीत कर,
मृत्यु की ओर अग्रसर।

अमीर-गरीब,
ज्ञानी-अज्ञानी,
एक दिशा में जा रहे,
मृत्यु को गले लगा रहे।

फूलों जैसा हो,
काँटों जैसा हो,
जीवन जैसे भी चले,
मृत्यु की ओर चले।

मानो या न मानो,
जानो या न जानो,
जीवन चल-चल कर,
मृत्यु की ओर अग्रसर।