Friday, November 12, 2010

मयूरी

मेघा उमड़-उमड़ आये,
शीत ब्यार लहराये,
आमों की डालियाँ झुकी जायें,
मयूरी तुम कब नाचोगी!

किस बात पे हो खफा,
किस कारण हो नाराज़,
प्रकृति बजा रही हर साज़,
मयूरी तुम कब नाचोगी!

आँखों की नमी बता रही,
याद पिया की सता रही,
आता नहीं जाने वाला,
मयूरी तुम कब नाचोगी!

दिल में लगा हे नश्तर,
सीने पर रख पत्थर,
इसे ही जीना कहते हैं,
मयूरी तुम कब नाचोगी!

छलनी हो झरना गिरता है,
सरिता सागर से मिलती है,
अस्तित्व अपना मिटाती है,
मयूरी तुम कब नाचोगी!