कौन कहता है,
सोहबत का असर होता है,
फूल, फूल रहता है,
शूल, शूल रहता है।
खड़े पानी में,
कमल खिलते हैं,
बहती नदी में,
पत्थर अडिग रहते हैं।
मियां-बीवी की तकरार,
कायम रहती है,
मियां, मियां रहता है,
बीवी, बीवी रहती है।
कहने को,
बदल सकता है ज़माने को,
न खुद बदलता है,
न ज़माना बदलता है।
मानव जैसा होता है,
वैसे ही मित्र चुनता है,
सोहबत का जाल,
स्वयं बुनता है।
सोहबत का असर होता है,
फूल, फूल रहता है,
शूल, शूल रहता है।
खड़े पानी में,
कमल खिलते हैं,
बहती नदी में,
पत्थर अडिग रहते हैं।
मियां-बीवी की तकरार,
कायम रहती है,
मियां, मियां रहता है,
बीवी, बीवी रहती है।
कहने को,
बदल सकता है ज़माने को,
न खुद बदलता है,
न ज़माना बदलता है।
मानव जैसा होता है,
वैसे ही मित्र चुनता है,
सोहबत का जाल,
स्वयं बुनता है।