कुवें के मेंडक की तरह
अपनी दुनिया में रहता है
जब चाहा फुदक लिया
मन चाहा गुनगुना लिया
कुवें के बाहर भी,
एक संसार हे,
उसे क्या लेना-देना,
कुवें का सरदार है।
सुने या न सुने,
कोई सरोकार नहीं,
कहना हो तो कह दिया,
टोकने वाला है नहीं।
कवि और मेंडक में,
कुछ अंतर नहीं,
सत्य यही है मगर,
कवि मानेगा नहीं।
कवि लिखता हे,
प्रायः सही,
चेतना जगाता हे,
जो है ही नहीं।
Friday, March 12, 2010
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