Wednesday, December 17, 2008

आप

अपनों को अपना ना सका ,
वह दूसरों का क्या होगा ,
अपने घर में आग लगाए ,
औरों का साथी क्या होगा ।

करे अपनों से ,
गैरों सा व्यवहार ,
वह दूसरों का यार ,
क्या होगा।

जहाँ सब कुछ हो तिजारत ,
वहां प्यार क्या होगा ,
जहाँ पैसा हो खुदा ,
वहां बन्दों का क्या होगा।

कैकयी और कंस ,
आज भी हैं श्रीमान ,
तनिक आँख खोल देख ,
हैं सब यहीं विराजमान ।

मानवता कुछ भी ,
उन्नति न कर सकी ,
वह वहीं खड़ी है ,
युगों से गडी है ।

नफरत की वजह ,
अब धर्म हो गया ,
धर्म न भी होता ,
तो और कारण होता ।

आदमी का बहशीपन ,
शायद उसकी फितरत है ,
नष्ट करने की भावना ही ,
अब उसकी आदत है ।


Thursday, December 11, 2008

सीखना

न रो-रो के होता है,
जीवन में कुछ भी,
न मर-मर के होता है,
जीवन में कुछ भी।

अगर कुछ भी करना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में,
मरने से न डरना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में।

फिर ज़िन्दगी तुम्हारी है,
सुख-चैन भी तुम्हारा है,
सुंदर धरती तुम्हारी है,
आकाश भी तुम्हारा है।

ज़िन्दगी का राज़,
और कुछ भी नहीं,
डर पर विजय पाना है,
और कुछ भी नहीं।

डर से न डर,
हो जा निडर,
फिर ज़िन्दगी होगी,
एक खूबसूरत सफर।