भारतवर्ष में,
है गुरुओं की भरमार,
ऐसा क्यों
समझाओ यार।
गरीबी हटाने के लिए,
चाहिए पैसों का भण्डार,
गुरुओं का इस से,
नहीं कोई सरोकार।
पुल बनाने के लिए,
अनाज की उपज बढ़ाने के लिए,
चाँद पर जाने के लिए,
अस्पताल चलाने के लिए।
जनता इनके पास,
क्यों जाती है,
अपना धन,
श्रद्धा से चढ़ाती है।
लोग बेवकूफ या पागल हैं,
मैं नहीं जानता,
पढ़े-लिखे शायद ऐसा माने,
मैं नहीं मानता।
भक्त प्यार से जाता,
आस्था से शीश नवाता,
मन की शांति पाता,
गुरु जी के गुण गाता।
छिपा इन बातों में,
है एक मूल कारण,
दुखी एवं अशांत मानव,
चाहे इनका निवारण।
इस प्रबल चाह के आगे,
उसका विवेक नतमस्तक है,
और यह भी सत्य है,
वह जहां खड़ा था, वहीँ है।
Friday, February 4, 2011
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