दुनिया को बदलने का
दम भरता
हैरत की बात
खुद नहीं बदलता
बाहर है चमक - धमक
अंधर से खोखला
बेमतलब का शोरो - गुल
मनुष्य हुआ बाँवला
अपने भी हैं पराये भी
भरे जहाँ में तन्हा
हर जशन की जान है
अपनी जान तन्हा
इधर - उधर की
बात करता
जिंदगी क्या
समझ नहीं सकता
जीने का मकसद
दूसरों को समझाता
काश ! जिंदगी की हकीकत
स्वयं समझ पाता
Monday, January 30, 2012
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