Monday, January 5, 2009

अनंत चिंता

न किसी से ,
कुछ लेता है ,
न किसी को ,
कुछ देता है।

हैरत की बात है ,
फिर भी मानव ,
डर - डर कर ,
क्यों जीता है ।

डर है आख़िर ,
किस बात का ,
मर - मर कर ,
क्यों जीता है ।

साहिब का डर ,
नौकर का डर ,
पुलिस का डर ,
चोर का डर।

अपनों का डर ,
बेगानों का डर ,
राह चलते ,
अंजानो का डर ।

है किसी अनिश्चित ,
दुर्घटना का डर ,
हर आने वाले ,
पल का डर .

आती जाती श्वास ,
हो जैसे थम गई ,
ज़िन्दगी एक डर ,
बन कर रह गई ।

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