Tuesday, September 22, 2009

कुछ भी न होता

न हर्षोल्लास का सागर होता,
न ही प्यार की नदी होती,
कुछ भी न होता,
अगर तू न होती।

न गगन में तारे होते,
न पर्वतों पर बर्फ होती,
न चाँद घटता -बड़ता,
न ही चांदनी होती।

घनी - सुंदर वादियाँ,
तेरी एक नज़र को तरसती,
न जंगलों में कोहरा होता,
न झरनों की मधुर ध्वनी होती।

न फूलों में रंग होता,
न पंखडियों में कोमलता होती,
न सुबह का सूरज रंगीन होता,
न ही संध्या सुहानी होती।

न वन में मोर नाचता,
न कोयल की कूक होती,
कुछ भी न होता,
अगर तू न होती.

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