स्त्री भोग की वस्तु नहीं,
मनुष्य भोग की वस्तु नहीं,
धर्म हमें यह सिखाता है,
बारंबार समझाता है।
क्या यह सत्य है,
या सत्य को नकारता है,
धर्म का दृष्टिकोण है,
अपना पक्ष बतलाता है।
आम नर-नारी की सोच,
शायद धर्म के विपरीत है,
इन रिश्तों में केवल,
भोग का संगीत है।
भोग के रिश्तों में,
कभी सुख कभी दुःख,
जो भोगी नहीं,
क्या जाने सुख-दुःख।
Monday, February 13, 2012
Sunday, February 12, 2012
चोर-महाचोर
बर्दाश्त की हद होती हो,
ऐसा लगता नहीं,
वर्ना नित्य नए कांड,
होते नहीं।
खून अब क्यों,
खौलता नहीं,
मर गया है ज़मीर,
बोलता नहीं।
इस कदर गिर चुके हैं हम,
खुद को भी पहचानते नहीं,
वानरों का सेनापति,
अब हनुमान नहीं।
कोई चोर तो कोई महाचोर,
बस इनमे फर्क है इतना,
कबूतर अपनी आँखें बंद भी करले,
कठिन है इनसे बचना।
आओ अपनी आँखें खोलें,
आवाजें करें बुलंद,
घिनौनी मौत से बेहतर है,
करें उनकी बोलती बंद.
ऐसा लगता नहीं,
वर्ना नित्य नए कांड,
होते नहीं।
खून अब क्यों,
खौलता नहीं,
मर गया है ज़मीर,
बोलता नहीं।
इस कदर गिर चुके हैं हम,
खुद को भी पहचानते नहीं,
वानरों का सेनापति,
अब हनुमान नहीं।
कोई चोर तो कोई महाचोर,
बस इनमे फर्क है इतना,
कबूतर अपनी आँखें बंद भी करले,
कठिन है इनसे बचना।
आओ अपनी आँखें खोलें,
आवाजें करें बुलंद,
घिनौनी मौत से बेहतर है,
करें उनकी बोलती बंद.
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