मरे हुए लोग,
क्या बदलाव लायेंगे,
कुछ बचे हैं जीवित,
वे इन्कलाब लायेंगे।
उठालो अपने हाथ,
गूँज करे यह नारा,
ज़ुल्मों का करो नाश,
है ये देश हमारा।
सैलाब जब आता है,
किनारे टूटते हैं,
आन्दोलनों से ही,
जहां बदलते हैं।
सब कुछ तोड़ो,
चुप रहना छोड़ो,
लहराओ युद्ध-पताका,
बदलाव लाकर छोड़ो।
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4 comments:
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सार्थक आह्वान...आवश्यक है ....
सुन्दर रचना...
vandana ji
most grateful for your kind comments.
ranjana ji
your views are highly appreciated
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