सती-प्रथा,
पुराने युग की बात थी,
नवयुग में,
नये रिवाजों की बात है।
शादी-शुदा होती थी,
आज आवश्यक नहीं,
न अंकुश है,
बंदिश भी नहीं।
मात्र अग्नि -दाह था,
आज साधनों की कमी नहीं,
पंखे से लटको, इमारत से कूदो,
रेलगाड़ी का प्रयोग दुष्वार नहीं।
अपने रिवाजों को छोड़,
दूसरी सभ्यता अपनाना,
गलत हो या सही,
चुकाना पड़ेगा हरजाना।
मोबाइल,पत्रिकाएं,टेलीविजन,इंटरनेट,
सब का हाथ है,
आत्म-हत्या को बढावा देने में,
सबका साथ है।
आज़ादी है जीने की,
मरने की,
समाज दोषी कल भी था,
दुष्ट समाज आज भी है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment