Wednesday, February 13, 2008

पानी

पानी पानी में क्या हे फर्क,
कहीं मीठा कहीं खारा होता,
मनुष्य भी हैं अलग-अलग,
एक सीधा, दूसरा टेढा होता।

आकाश भी एक जैसा कहाँ,
घने मेघा इधर, नीला वहाँ,
रंग बिरंगी दुनिया में,
नहीं कुछ एक जैसा यहाँ।

है हवाओं में भी अंतर,
कहीं लू, कहीं शीत लहर,
कभी खुशी, कभी गम का मन्ज़र,
भिन्न है हर एक का सफर।

हम एक हैं समझा नहीं,
है दुर्दशा का कारण यही,
कब जान पायेगा मालूम नहीं,
राहत मिलेगी या नहीं।

मानसिक संतुलन खोने से होता यही,
सब कुछ होते हुए भी, कुछ होता नहीं,
पानी, पानी में अंतर यही,
कहीं रुक गया, कहीं रुकता नहीं।

3 comments:

Anonymous said...

last four lines are excellent

Anonymous said...

paani to paani hi rehata hai

subhash said...

Dear anonymous 1
Your comments are deeply appreciated.

Dear anonymous 2
Paani to paani hi hota hai
Aankh ka paani
Na jaane kaya kahta hai

NamaskarSubhash