शब्दों में अनबन,
हो सकती है,
पंक्ति बढ़ी या छोटी,
हो सकती है।
पैगाम का पर्वाह,
न कम होना चाहिए,
भले चट्टान हो रास्ते में,
नदी सा बहाव होना चाहिए।
कविता वह नही
जो रुक रुक कर चले,
वह ऐसी धरा है,
जो सर्वदा बहती चले।
वह निर्मल हे,
वह शांत हे,
दबे पाँव चलती है,
दिलों को हरती है।
कविता वह जो आँखें खोले,
कविता वह जो सत्य बोले,
कविता है वह अनकही बात,
जो ज्ञान के भंडार खोले।
Sunday, August 31, 2008
Friday, August 8, 2008
ॐ
गीत के लिए ,
शब्द दूंदता हूँ ,
सुर दूंदता हूँ ,
साज दूंदता हूँ।
सुर, गीत, संगीत का ,
ऐसा हो मधुर मिलन ,
सुन कर दुनिया झूमे ,
पुलकित हो हर मन ।
जीवन भी,
इसी प्रकार हो ,
स्वस्थ्य शरीर ,
सुंदर विचार हों ।
प्यार से,
जीना सीखें ,
खुशी हो या गम ,
ढंग से रहना सीखें ।
अपनी संस्कृति और सभ्यता की ,
दीवारों में रहना सीखें ,
बच्चों की भांति ,
निस्स्वार्थ मिलना सीखें ।
शब्द दूंदता हूँ ,
सुर दूंदता हूँ ,
साज दूंदता हूँ।
सुर, गीत, संगीत का ,
ऐसा हो मधुर मिलन ,
सुन कर दुनिया झूमे ,
पुलकित हो हर मन ।
जीवन भी,
इसी प्रकार हो ,
स्वस्थ्य शरीर ,
सुंदर विचार हों ।
प्यार से,
जीना सीखें ,
खुशी हो या गम ,
ढंग से रहना सीखें ।
अपनी संस्कृति और सभ्यता की ,
दीवारों में रहना सीखें ,
बच्चों की भांति ,
निस्स्वार्थ मिलना सीखें ।
Saturday, August 2, 2008
शुरू आत
अब इस संसार में,
रहने को मन नही करता,
मानव का घोर पतन देख,
जीने को दिल नही करता।
झूठ ही झूठ यहाँ,
सत्य नहीं मिलता,
जीना दुष्वार हुआ,
मरने को मन करता।
कैसी लाचारी है ,
मर-मर कर जीता,
कैसा दर्द है ,
कम नही होता।
आशा की किरण,
दिखाई नही देती,
मौत भी,
गले नही लगाती।
कर्ता-धर्ता हैं हरामी,
इनका काटा न मांगे पानी,
आदमी पर नही है आस,
ऊपर वाले पर खोया विश्वास।
आ जाये प्रलय,
हो जाये अंत,
एक नई दुनिया बसाई जाये,
शुरू से शुरू किया जाये।
रहने को मन नही करता,
मानव का घोर पतन देख,
जीने को दिल नही करता।
झूठ ही झूठ यहाँ,
सत्य नहीं मिलता,
जीना दुष्वार हुआ,
मरने को मन करता।
कैसी लाचारी है ,
मर-मर कर जीता,
कैसा दर्द है ,
कम नही होता।
आशा की किरण,
दिखाई नही देती,
मौत भी,
गले नही लगाती।
कर्ता-धर्ता हैं हरामी,
इनका काटा न मांगे पानी,
आदमी पर नही है आस,
ऊपर वाले पर खोया विश्वास।
आ जाये प्रलय,
हो जाये अंत,
एक नई दुनिया बसाई जाये,
शुरू से शुरू किया जाये।
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