Friday, August 8, 2008

गीत के लिए ,
शब्द दूंदता हूँ ,
सुर दूंदता हूँ ,
साज दूंदता हूँ।

सुर, गीत, संगीत का ,
ऐसा हो मधुर मिलन ,
सुन कर दुनिया झूमे ,
पुलकित हो हर मन ।

जीवन भी,
इसी प्रकार हो ,
स्वस्थ्य शरीर ,
सुंदर विचार हों ।

प्यार से,
जीना सीखें ,
खुशी हो या गम ,
ढंग से रहना सीखें ।

अपनी संस्कृति और सभ्यता की ,
दीवारों में रहना सीखें ,
बच्चों की भांति ,
निस्स्वार्थ मिलना सीखें ।

No comments: