Tuesday, February 24, 2009

विवाह

टूट कर बंधन,

एक हो नहीं सकता,

मजबूरी में किया समझोता,

प्यार हो नहीं सकता

जिसे एक बार छोड़ चुके,

उसे अपनाने से क्या फायदा,

गलती को दोहराने से

क्या फायदा।

है एक सामाजिक ज़रूरत,

यह सोच कर शादी करता,

प्यार हो या न हो,

कुछ फरक नही पङता

शादी की वज़ह को,

जब तक न जान पाओगे,

यूँ ही शादी करने से,

खुशियाँ न पाओगे

बदलती ऋतुओं की भांति ,

प्यार स्थायी है नहीं ,

शादी एक उबड़-खाबड़ रास्ता,

सीधी-साधी सड़क है नहीं ।

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