सती-प्रथा,
पुराने युग की बात थी,
नवयुग में,
नये रिवाजों की बात है।
शादी-शुदा होती थी,
आज आवश्यक नहीं,
न अंकुश है,
बंदिश भी नहीं।
मात्र अग्नि -दाह था,
आज साधनों की कमी नहीं,
पंखे से लटको, इमारत से कूदो,
रेलगाड़ी का प्रयोग दुष्वार नहीं।
अपने रिवाजों को छोड़,
दूसरी सभ्यता अपनाना,
गलत हो या सही,
चुकाना पड़ेगा हरजाना।
मोबाइल,पत्रिकाएं,टेलीविजन,इंटरनेट,
सब का हाथ है,
आत्म-हत्या को बढावा देने में,
सबका साथ है।
आज़ादी है जीने की,
मरने की,
समाज दोषी कल भी था,
दुष्ट समाज आज भी है।
Thursday, November 29, 2007
Monday, November 26, 2007
सीख
झरनों से सीख,
गिर कर,
मधुर स्वर में गाया जाये।
पर्वतों से,
बदलते मोसमें में,
शांत रहा जाये।
चट्टानों से,
निरन्तर प्रहारों में,
अडिग रहा जाये।
लहरों से,
अथक प्रयास,
सर्वदा चला जाये।
पेड़- पोधों से,
जीने का मकसद,
निस्-स्वार्थ जिया जाये।
सृष्टि- रचियता से,
अंहकार त्याग,
गुमनाम रहा जाये।
गिर कर,
मधुर स्वर में गाया जाये।
पर्वतों से,
बदलते मोसमें में,
शांत रहा जाये।
चट्टानों से,
निरन्तर प्रहारों में,
अडिग रहा जाये।
लहरों से,
अथक प्रयास,
सर्वदा चला जाये।
पेड़- पोधों से,
जीने का मकसद,
निस्-स्वार्थ जिया जाये।
सृष्टि- रचियता से,
अंहकार त्याग,
गुमनाम रहा जाये।
Friday, October 26, 2007
संयम
अपने ख्यालों और जज्बातों को ,
छिपाये रखो ,
प्रलय से बचना है,
बंद मुठ्ठी को बंद रखो।
माना कि चुप रहना,
आसान नहीं,
आत्मा का घला घोटना ,
कोई आम बात नहीं।
यह सच है कि आपका बोलना,
बहुत जरूरी है,
पर चुप्पी साधे रखना ,
सबसे बडी मजबूरी है।
चलने दो दुनिया को,
जैसे चलती है,
अपना राग न अलापो ,
ऐसे ही गाड़ी बढ़ती है।
न बोलने में शांति,
बोलो तो अशांति ,
मौन रहो तो मिले स्वर्ग ,
कहो कुछ तो नरक ही नरक।
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अपने ख्यालों और जज्बातों को ,
छिपाये रखो ,
प्रलय से बचना है,
बंद मुठ्ठी को बंद रखो।
माना कि चुप रहना,
आसान नहीं,
आत्मा का घला घोटना ,
कोई आम बात नहीं।
यह सच है कि आपका बोलना,
बहुत जरूरी है,
पर चुप्पी साधे रखना ,
सबसे बडी मजबूरी है।
चलने दो दुनिया को,
जैसे चलती है,
अपना राग न अलापो ,
ऐसे ही गाड़ी बढ़ती है।
न बोलने में शांति,
बोलो तो अशांति ,
मौन रहो तो मिले स्वर्ग ,
कहो कुछ तो नरक ही नरक।
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Saturday, October 13, 2007
मूर्खता
तूने अपने को खुदा जाना,
मैंने स्वयं को खुदा माना,
सदियों से एक-दूसरे को जलाते रहे,
खुदा कौन! न में जाना, न तू जाना।
कभी खुदा के लिये,
कभी खुदाई के लिये,
मरने-मारने को मजबूर,
इतना अभिमान, इतना गुरूर।
बंदे खुदा को तेरी ज़रूरत नही,
बगेर तेरी मदद के बखूब जी लेगा,
क्यों लहू-लुहान करता हे,
उसे बदनाम करता हे।
विनती हे दुनिया के पागलों से,
भगवान् के नाम पे न लड़ो-मरो,
खुद के लिये जो चाहे करो,
खुदा का नाम न बदनाम करो।
तेरी काली-करतूतों का दण्ड,
तुझे अवश्य मिलेगा,
उसके घर देर हे अंधेर नही,
वह खुदा हे, बेसहारा नही।
मैंने स्वयं को खुदा माना,
सदियों से एक-दूसरे को जलाते रहे,
खुदा कौन! न में जाना, न तू जाना।
कभी खुदा के लिये,
कभी खुदाई के लिये,
मरने-मारने को मजबूर,
इतना अभिमान, इतना गुरूर।
बंदे खुदा को तेरी ज़रूरत नही,
बगेर तेरी मदद के बखूब जी लेगा,
क्यों लहू-लुहान करता हे,
उसे बदनाम करता हे।
विनती हे दुनिया के पागलों से,
भगवान् के नाम पे न लड़ो-मरो,
खुद के लिये जो चाहे करो,
खुदा का नाम न बदनाम करो।
तेरी काली-करतूतों का दण्ड,
तुझे अवश्य मिलेगा,
उसके घर देर हे अंधेर नही,
वह खुदा हे, बेसहारा नही।
Tuesday, September 18, 2007
Sunday, September 16, 2007
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