अपनों को अपना ना सका ,
वह दूसरों का क्या होगा ,
अपने घर में आग लगाए ,
औरों का साथी क्या होगा ।
करे अपनों से ,
गैरों सा व्यवहार ,
वह दूसरों का यार ,
क्या होगा।
जहाँ सब कुछ हो तिजारत ,
वहां प्यार क्या होगा ,
जहाँ पैसा हो खुदा ,
वहां बन्दों का क्या होगा।
कैकयी और कंस ,
आज भी हैं श्रीमान ,
तनिक आँख खोल देख ,
हैं सब यहीं विराजमान ।
मानवता कुछ भी ,
उन्नति न कर सकी ,
वह वहीं खड़ी है ,
युगों से गडी है ।
नफरत की वजह ,
अब धर्म हो गया ,
धर्म न भी होता ,
तो और कारण होता ।
आदमी का बहशीपन ,
शायद उसकी फितरत है ,
नष्ट करने की भावना ही ,
अब उसकी आदत है ।
Wednesday, December 17, 2008
Thursday, December 11, 2008
सीखना
न रो-रो के होता है,
जीवन में कुछ भी,
न मर-मर के होता है,
जीवन में कुछ भी।
अगर कुछ भी करना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में,
मरने से न डरना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में।
फिर ज़िन्दगी तुम्हारी है,
सुख-चैन भी तुम्हारा है,
सुंदर धरती तुम्हारी है,
आकाश भी तुम्हारा है।
ज़िन्दगी का राज़,
और कुछ भी नहीं,
डर पर विजय पाना है,
और कुछ भी नहीं।
डर से न डर,
हो जा निडर,
फिर ज़िन्दगी होगी,
एक खूबसूरत सफर।
जीवन में कुछ भी,
न मर-मर के होता है,
जीवन में कुछ भी।
अगर कुछ भी करना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में,
मरने से न डरना है,
दोस्तों ज़िन्दगी में।
फिर ज़िन्दगी तुम्हारी है,
सुख-चैन भी तुम्हारा है,
सुंदर धरती तुम्हारी है,
आकाश भी तुम्हारा है।
ज़िन्दगी का राज़,
और कुछ भी नहीं,
डर पर विजय पाना है,
और कुछ भी नहीं।
डर से न डर,
हो जा निडर,
फिर ज़िन्दगी होगी,
एक खूबसूरत सफर।
Friday, October 10, 2008
शेयर -बाज़ार
जिंदगी शेयर -बाज़ार,
बन कर रह गई ,
सोते -जागते ,उठते -बैठते ,
सनक बन कर रह गई।
एक टूक नज़रों से निहारता ,
टी .वी बन गयी प्रियतमा ,
अगर शेयर का भाव गिरता ,
बढ़ जा ! पुकारती अंतरात्मा ।
जुआ खेलने की प्रवति को ,
शेयर - बाज़ार ने दिया सम्मान ,
व्यवसाय का स्तर देकर ,
सध्बुधि का किया अपमान ।
विदेशों में "कसीनो "हैं ,
जो आलिशान जुआघर हैं ,
शेयर -बाज़ार भी वहां ,
सर -आंखों पर हैं ।
जुआघर भी खोल डालो ,
किसी से पीछे क्यों रहें ,
विदेशी पहनावा ओढ़कर ,
कदम मिला चलतें रहें ।
जुआघर और शेयर -बाज़ार ,
संस्कार हनन कर रहे ,
अच्छा क्या बुरा क्या,
पहचान इनकी खो रहे .
बन कर रह गई ,
सोते -जागते ,उठते -बैठते ,
सनक बन कर रह गई।
एक टूक नज़रों से निहारता ,
टी .वी बन गयी प्रियतमा ,
अगर शेयर का भाव गिरता ,
बढ़ जा ! पुकारती अंतरात्मा ।
जुआ खेलने की प्रवति को ,
शेयर - बाज़ार ने दिया सम्मान ,
व्यवसाय का स्तर देकर ,
सध्बुधि का किया अपमान ।
विदेशों में "कसीनो "हैं ,
जो आलिशान जुआघर हैं ,
शेयर -बाज़ार भी वहां ,
सर -आंखों पर हैं ।
जुआघर भी खोल डालो ,
किसी से पीछे क्यों रहें ,
विदेशी पहनावा ओढ़कर ,
कदम मिला चलतें रहें ।
जुआघर और शेयर -बाज़ार ,
संस्कार हनन कर रहे ,
अच्छा क्या बुरा क्या,
पहचान इनकी खो रहे .
Saturday, September 13, 2008
एक बार फिर
कल फिर बम फटे,
बीच बाज़ार फटे ,
डंके की चोट पर ,
ललकार कर फटे ।
है नहीं अचरज ,
दोनों दुनिया की गन्दी उपज ,
एक बम बनाता है ,
दूसरा भाषण देता है ।
कुछ को पकड़ नहीं पाते,
इसलिए आजाद रह जाते ,
जिनको पकड़ सकते हैं ,
वे भी आजाद रहते हैं ।
कसूर हमारा है ,
दोनों के जन्म- दाता हैं ,
आंतक - वादी भी हमारा है ,
पुलिस भी हमारी है ।
हमारी मिली भगत से ,
भोली जाने जाती हैं ,
कुछ दिन रो - धो कर ,
कार्यवाही पुन: शुरू हो जाती है ।
आंतक वादी बम बनाने में ,
दिलो - जान से झुट जाता है ,
कर्ता - धर्ता शोर मचा कर ,
गहरी नींद सो जाता है ।
बीच बाज़ार फटे ,
डंके की चोट पर ,
ललकार कर फटे ।
है नहीं अचरज ,
दोनों दुनिया की गन्दी उपज ,
एक बम बनाता है ,
दूसरा भाषण देता है ।
कुछ को पकड़ नहीं पाते,
इसलिए आजाद रह जाते ,
जिनको पकड़ सकते हैं ,
वे भी आजाद रहते हैं ।
कसूर हमारा है ,
दोनों के जन्म- दाता हैं ,
आंतक - वादी भी हमारा है ,
पुलिस भी हमारी है ।
हमारी मिली भगत से ,
भोली जाने जाती हैं ,
कुछ दिन रो - धो कर ,
कार्यवाही पुन: शुरू हो जाती है ।
आंतक वादी बम बनाने में ,
दिलो - जान से झुट जाता है ,
कर्ता - धर्ता शोर मचा कर ,
गहरी नींद सो जाता है ।
Saturday, September 6, 2008
आम आदमी
भाग्यवान हूँ ,
आम आदमी हूँ ,
जहाँ जी चाहे ,
आता - जाता हूँ ।
नेता - अभिनेता होता ,
कैदी सामान होता ,
दो चमचे आगे ,दो पीछे ,
मेरा पहनावा होता ।
दोस्त - दुश्मन की ,
न होती पहचान ,
ऐसे हालात,
करते परेशान।
धनवान होता ,
भाई -बहिनों से लड़ता ,
धन प्राप्ति लक्ष्य होता ,
धन ही खुदा होता ।
बहुत खुश हूँ ,
राम नहीं ,
शबरी के झूठे बेर खाना ,
प्रत्येक के बस की बात नहीं ।
आम आदमी के पास ,
न अपना न पराया आता ,
वह कितना भाग्यशाली है ,
काश वह आंक पाता .
आम आदमी हूँ ,
जहाँ जी चाहे ,
आता - जाता हूँ ।
नेता - अभिनेता होता ,
कैदी सामान होता ,
दो चमचे आगे ,दो पीछे ,
मेरा पहनावा होता ।
दोस्त - दुश्मन की ,
न होती पहचान ,
ऐसे हालात,
करते परेशान।
धनवान होता ,
भाई -बहिनों से लड़ता ,
धन प्राप्ति लक्ष्य होता ,
धन ही खुदा होता ।
बहुत खुश हूँ ,
राम नहीं ,
शबरी के झूठे बेर खाना ,
प्रत्येक के बस की बात नहीं ।
आम आदमी के पास ,
न अपना न पराया आता ,
वह कितना भाग्यशाली है ,
काश वह आंक पाता .
Sunday, August 31, 2008
कविता
शब्दों में अनबन,
हो सकती है,
पंक्ति बढ़ी या छोटी,
हो सकती है।
पैगाम का पर्वाह,
न कम होना चाहिए,
भले चट्टान हो रास्ते में,
नदी सा बहाव होना चाहिए।
कविता वह नही
जो रुक रुक कर चले,
वह ऐसी धरा है,
जो सर्वदा बहती चले।
वह निर्मल हे,
वह शांत हे,
दबे पाँव चलती है,
दिलों को हरती है।
कविता वह जो आँखें खोले,
कविता वह जो सत्य बोले,
कविता है वह अनकही बात,
जो ज्ञान के भंडार खोले।
हो सकती है,
पंक्ति बढ़ी या छोटी,
हो सकती है।
पैगाम का पर्वाह,
न कम होना चाहिए,
भले चट्टान हो रास्ते में,
नदी सा बहाव होना चाहिए।
कविता वह नही
जो रुक रुक कर चले,
वह ऐसी धरा है,
जो सर्वदा बहती चले।
वह निर्मल हे,
वह शांत हे,
दबे पाँव चलती है,
दिलों को हरती है।
कविता वह जो आँखें खोले,
कविता वह जो सत्य बोले,
कविता है वह अनकही बात,
जो ज्ञान के भंडार खोले।
Friday, August 8, 2008
ॐ
गीत के लिए ,
शब्द दूंदता हूँ ,
सुर दूंदता हूँ ,
साज दूंदता हूँ।
सुर, गीत, संगीत का ,
ऐसा हो मधुर मिलन ,
सुन कर दुनिया झूमे ,
पुलकित हो हर मन ।
जीवन भी,
इसी प्रकार हो ,
स्वस्थ्य शरीर ,
सुंदर विचार हों ।
प्यार से,
जीना सीखें ,
खुशी हो या गम ,
ढंग से रहना सीखें ।
अपनी संस्कृति और सभ्यता की ,
दीवारों में रहना सीखें ,
बच्चों की भांति ,
निस्स्वार्थ मिलना सीखें ।
शब्द दूंदता हूँ ,
सुर दूंदता हूँ ,
साज दूंदता हूँ।
सुर, गीत, संगीत का ,
ऐसा हो मधुर मिलन ,
सुन कर दुनिया झूमे ,
पुलकित हो हर मन ।
जीवन भी,
इसी प्रकार हो ,
स्वस्थ्य शरीर ,
सुंदर विचार हों ।
प्यार से,
जीना सीखें ,
खुशी हो या गम ,
ढंग से रहना सीखें ।
अपनी संस्कृति और सभ्यता की ,
दीवारों में रहना सीखें ,
बच्चों की भांति ,
निस्स्वार्थ मिलना सीखें ।
Saturday, August 2, 2008
शुरू आत
अब इस संसार में,
रहने को मन नही करता,
मानव का घोर पतन देख,
जीने को दिल नही करता।
झूठ ही झूठ यहाँ,
सत्य नहीं मिलता,
जीना दुष्वार हुआ,
मरने को मन करता।
कैसी लाचारी है ,
मर-मर कर जीता,
कैसा दर्द है ,
कम नही होता।
आशा की किरण,
दिखाई नही देती,
मौत भी,
गले नही लगाती।
कर्ता-धर्ता हैं हरामी,
इनका काटा न मांगे पानी,
आदमी पर नही है आस,
ऊपर वाले पर खोया विश्वास।
आ जाये प्रलय,
हो जाये अंत,
एक नई दुनिया बसाई जाये,
शुरू से शुरू किया जाये।
रहने को मन नही करता,
मानव का घोर पतन देख,
जीने को दिल नही करता।
झूठ ही झूठ यहाँ,
सत्य नहीं मिलता,
जीना दुष्वार हुआ,
मरने को मन करता।
कैसी लाचारी है ,
मर-मर कर जीता,
कैसा दर्द है ,
कम नही होता।
आशा की किरण,
दिखाई नही देती,
मौत भी,
गले नही लगाती।
कर्ता-धर्ता हैं हरामी,
इनका काटा न मांगे पानी,
आदमी पर नही है आस,
ऊपर वाले पर खोया विश्वास।
आ जाये प्रलय,
हो जाये अंत,
एक नई दुनिया बसाई जाये,
शुरू से शुरू किया जाये।
Sunday, July 27, 2008
दिखावा
नेकी कर कुवें में डाल,
यह थी कल की बात ,
आज संसार के ,
बिगडे हैं हालत ।
नेकी ना करें ,
ख़बर दें छाप ,
झूठ बोल कर ,
पदमश्री हो प्राप्त ।
वर्षा हो ,
कोई नहीं करता प्रयास ,
दो बूंद जल चढ़ाकर,
करें स्वर्ग की आस .
ढोंगी का नाश ,
अक्सर होता है,
दूसरे की कबर खोदने वाला ,
स्वयं उसमें गिरता है।
भगवान् से डर,
उल जलूल काम ना कर,
अच्छा नहीं कर सकता ,
बुरा तो ना कर ।
यह थी कल की बात ,
आज संसार के ,
बिगडे हैं हालत ।
नेकी ना करें ,
ख़बर दें छाप ,
झूठ बोल कर ,
पदमश्री हो प्राप्त ।
वर्षा हो ,
कोई नहीं करता प्रयास ,
दो बूंद जल चढ़ाकर,
करें स्वर्ग की आस .
ढोंगी का नाश ,
अक्सर होता है,
दूसरे की कबर खोदने वाला ,
स्वयं उसमें गिरता है।
भगवान् से डर,
उल जलूल काम ना कर,
अच्छा नहीं कर सकता ,
बुरा तो ना कर ।
Thursday, June 5, 2008
खुशनसीब
बहुत बार ऐसा लगा,
जीवन की गाड़ी,
पटरी से,
उतर जायेगी।
खुदा का शुक्र है,
कर्मों का फल है,
शायद नसीब अच्छा है,
ऐसा नहीं हुआ।
मुसीबतें आईं ,
बार-बार आई,
ऐसा लगा,
मिट जाऊँगा।
जैसे-तैसे,
स्वयं को संभाला,
मेहनत की,
भँवर से निकाला।
दुःख आयेंगे,
घुटने न टेको,
धैर्य एवं संयम से,
कट जायेंगे।
यह आसान नहीं,
अत्यंत कठिन है,
नेक नियत से,
सम्भव है।
जीवन की गाड़ी,
पटरी से,
उतर जायेगी।
खुदा का शुक्र है,
कर्मों का फल है,
शायद नसीब अच्छा है,
ऐसा नहीं हुआ।
मुसीबतें आईं ,
बार-बार आई,
ऐसा लगा,
मिट जाऊँगा।
जैसे-तैसे,
स्वयं को संभाला,
मेहनत की,
भँवर से निकाला।
दुःख आयेंगे,
घुटने न टेको,
धैर्य एवं संयम से,
कट जायेंगे।
यह आसान नहीं,
अत्यंत कठिन है,
नेक नियत से,
सम्भव है।
Thursday, May 29, 2008
Sunday, May 4, 2008
आह
नेताओं को गरीबों के,
दर्द का अहसास है,
अधिकतर छीन लिया,
शेष खून की प्यास है।
देख कर इनका बहशीपन,
मन विचलित हो उठता है,
मारूं तो किस मौत मारूं,
हर दंड कम लगता है.
दर्द का अहसास है,
अधिकतर छीन लिया,
शेष खून की प्यास है।
देख कर इनका बहशीपन,
मन विचलित हो उठता है,
मारूं तो किस मौत मारूं,
हर दंड कम लगता है.
Sunday, April 20, 2008
व्याख्याता
पति यह हो या वह ,
पत्नी यह हो या वह ,
कुछ फरक नहीं पड़ता ,
विवाह रुपी पिंजडा नहीं बदलता ।
मेरे काव्य संग्रह " भँवर " से
पत्नी यह हो या वह ,
कुछ फरक नहीं पड़ता ,
विवाह रुपी पिंजडा नहीं बदलता ।
मेरे काव्य संग्रह " भँवर " से
Monday, March 31, 2008
Sunday, March 30, 2008
अपना-बेगाना
अपने तो अपने होते हैं,
वे जान से प्यारे होते हैं,
इस बदलती दुनिया में,
वे क्यों बेगाने होते हैं।
वे जान से प्यारे होते हैं,
इस बदलती दुनिया में,
वे क्यों बेगाने होते हैं।
Wednesday, March 26, 2008
सही बात
नवजात शिशु से सीख,
भेद-भाव मिटाना,
हँसते हुए रोते हुए,
हर एक को गले लगाना।
छोटी-छोटी बातों पर,
यूं ही खुश हो जाना,
एक क्षण रूठ कर,
दूसरे पल मान जाना।
भेद-भाव मिटाना,
हँसते हुए रोते हुए,
हर एक को गले लगाना।
छोटी-छोटी बातों पर,
यूं ही खुश हो जाना,
एक क्षण रूठ कर,
दूसरे पल मान जाना।
Monday, March 17, 2008
देखो
देखो,स्वयं को अवश्य देखो,
दूसरों की नज़रों से देखो,
ख़ुद , खुदा नहीं हो, देखो,
खुदा, कोई और है देखो।
दूसरों की नज़रों से देखो,
ख़ुद , खुदा नहीं हो, देखो,
खुदा, कोई और है देखो।
Thursday, February 14, 2008
मौन शक्ति
प्यार का नगमा,
गाता जा सुनाता जा,
उनके दिल को,
हर्षाता जा।
खुशी भी इसमें,
चैन भी इसमें,
प्यार की बीन,
बजाता जा।
कर्म भी यही,
धर्म भी यही,
सब कुछ यही,
समझाता जा।
प्यार ही प्यार,
ज़िंदगी का सार,
स्वयं पहचान ले,
औरों को बतलाता जा।
जीवन उद्धार,
कर पालनहार,
प्यार शक्ति,
दर्षाता जा।
गाता जा सुनाता जा,
उनके दिल को,
हर्षाता जा।
खुशी भी इसमें,
चैन भी इसमें,
प्यार की बीन,
बजाता जा।
कर्म भी यही,
धर्म भी यही,
सब कुछ यही,
समझाता जा।
प्यार ही प्यार,
ज़िंदगी का सार,
स्वयं पहचान ले,
औरों को बतलाता जा।
जीवन उद्धार,
कर पालनहार,
प्यार शक्ति,
दर्षाता जा।
Wednesday, February 13, 2008
पानी
पानी पानी में क्या हे फर्क,
कहीं मीठा कहीं खारा होता,
मनुष्य भी हैं अलग-अलग,
एक सीधा, दूसरा टेढा होता।
आकाश भी एक जैसा कहाँ,
घने मेघा इधर, नीला वहाँ,
रंग बिरंगी दुनिया में,
नहीं कुछ एक जैसा यहाँ।
है हवाओं में भी अंतर,
कहीं लू, कहीं शीत लहर,
कभी खुशी, कभी गम का मन्ज़र,
भिन्न है हर एक का सफर।
हम एक हैं समझा नहीं,
है दुर्दशा का कारण यही,
कब जान पायेगा मालूम नहीं,
राहत मिलेगी या नहीं।
मानसिक संतुलन खोने से होता यही,
सब कुछ होते हुए भी, कुछ होता नहीं,
पानी, पानी में अंतर यही,
कहीं रुक गया, कहीं रुकता नहीं।
कहीं मीठा कहीं खारा होता,
मनुष्य भी हैं अलग-अलग,
एक सीधा, दूसरा टेढा होता।
आकाश भी एक जैसा कहाँ,
घने मेघा इधर, नीला वहाँ,
रंग बिरंगी दुनिया में,
नहीं कुछ एक जैसा यहाँ।
है हवाओं में भी अंतर,
कहीं लू, कहीं शीत लहर,
कभी खुशी, कभी गम का मन्ज़र,
भिन्न है हर एक का सफर।
हम एक हैं समझा नहीं,
है दुर्दशा का कारण यही,
कब जान पायेगा मालूम नहीं,
राहत मिलेगी या नहीं।
मानसिक संतुलन खोने से होता यही,
सब कुछ होते हुए भी, कुछ होता नहीं,
पानी, पानी में अंतर यही,
कहीं रुक गया, कहीं रुकता नहीं।
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